साइटराइट टूल को किया गया लॉन्च

               


साइटराइट टूल को किया गया लॉन्च


 नई दिल्ली : न्यूयॉर्क जलवायु सप्ताह 2020 में द नेचर कंजर्वेंसी इंडिया ने सोलर और विंड परियोजनाओं के लिए सही जमीन चुनने में इससे जुड़े निर्णय लेने वालों, निवेशकों और फाइनेंसरों की मदद करने के लिए एक टूल लॉन्च किया। साइटराइट सभी के लिए मुफ्त में उपल्बध है। यह भूस्थानिक निर्णय लेने में मदद करने वाला टूल है। यह नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े नए प्रोजेक्ट्स के लिए संसाधन की प्रचुरता वाली जगहों को चुनने में मदद कर सकता है लेकिन साथ ही यह उन जगहों को नहीं चुनता जो जैव विविधता के हिसाब से समृद्ध हैं और जिन पर स्थानीय समुदाय निर्भर करते हैं। साइटराइट टूल को द नेचर कंजर्वेंसी इंडिया और उसकी सहयोगी संस्थाओं, सेंटर फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी), फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफईएस) और वसुधा फाउंडेशन (वीएफ) ने मिलकर विकसित किया गया। फिलहाल में इस टूल को दो राज्यों-महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के लिए विकसित किया गया है।
द नेचर कंजर्वेंसी इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर सीमा पॉल ने कहा, “हमारे वैज्ञानिक विश्लेषण से पता चला है कि यदि हम कम प्रभाव वाली जगहों में नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार के लिए कदम उठाएं तो भारत में वर्ष 2022 के लिए निर्धारित किए गए 175 गीगावॉट के लक्ष्य से दस गुना ज्यादा विकास करने की क्षमता है। ऐसे कदमों में प्रोजेक्ट की जगह चुनने के लिए दिशा-निर्देश विकसित करना, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों की पहचान करना, योजना और खरीद प्रक्रियाओं में सुधार और नवीकरणीय ऊर्जा की फाइनेंसिग के पर्यावरण और सामाजिक प्रदर्शन मानकों को मजबूत करना शामिल हैं।” 
संयुक्त राष्ट्र के असिस्टेंट सेक्रेटरी-जनरल और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के न्यूयॉर्क ऑफिस के प्रमुख, सत्य त्रिपाठी ने कहा, “आरई परियोजनाएं पूरी तरह जमीन आधारित होती हैं और जमीन के इनइलास्टिक होने के कारण जगह का चुनाव परियोजना की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। न केवल आरई बल्कि हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए भी वैकल्पिक साधनों की विकल्प लागत का सही अनुमान लगाना महत्वपूर्ण है। इसलिए सरकार और विभिन्न हितधारकों द्वारा निर्णय लेने में इस तरह का टूल महत्वपूर्ण साबित होगा। ष्
द नेचर कंजर्वेंसी इंडिया में ईकोलोजिकल इकोनोमिस्ट और साइटराइट प्रोजक्ट लीड धवल नेगांधी ने कहा, “साइटराइट टूल को व्यापक रूप से अपनाने से फिर से जंगल तैयार करने की उच्च क्षमता रखने वाले क्षेत्रों से दूर रहकर भारत के कार्बन को कम करने के लक्ष्य को पाने में भी मदद मिलेगी। साथ ही इससे महत्वपूर्ण जंगलों और प्राकृतिक क्षेत्रों के बीच कनेक्टिविटी की सुरक्षा होगी, वन्यजीवों की आवाजाही बेहतर होगी, लोगों और प्रकृति के लिए महत्वपूर्ण वन और कृषि भूमि के इस्तेमाल में होने वाले बदलाव से बचा जा सकेगा और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों और आजीविका पर पड़ने वाले प्रभावों से भी बचाव होगा।”
साइटराइट टूल को व्यापक रूप से अपनाने से भारत को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी क्योंकि इससे निवेश पर जोखिम कम होगा, अनुमति मिलने में देरी कम होगी और स्थानीय समुदायों औरध्या पर्यावरण हितधारकों के साथ  होने वाले टकराव से बचा जा सकेगा। साथ ही इससे महत्वपूर्ण ईकोसिस्टम्स और लोगों को उनसे होने वाले फायदों का भी सरंक्षण किया जा सकेगा।


सही जगह पर स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं ताकि अपनी पर्यावरण प्रतिबद्धताओं से समझौता किए बिना या आरई परियोजनाओं में देरी के बिना भारत अपने महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल कर सके। नवीकरणीय ऊर्जा विकास क्षेत्रों की तेजी से पहचान करके राज्य सरकारें संघर्षों और परियोजना में होने वाली देरी तथा लागत के ज्यादा हो जाने जैसी बातों को दूर करके नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने में मदद कर सकती हैं।