एफएआईएफए ने ऐसा कोई नीतिगत फैसला नहीं लेने की अपील की, जिससे अस्थिरता बढ़े और भारतीय एफसीवी तंबाकू किसानों की आजीविका पर दुष्प्रभाव पड़े व तस्करी कर लाए हुए विदेशी ब्रांड को बढ़ावा मिले

एफएआईएफए ने महामारी के मौजूदा दौर में ऐसा कोई नीतिगत फैसला नहीं लेने की अपील की, जिससे अस्थिरता बढ़े और भारतीय एफसीवी तंबाकू किसानों की आजीविका पर दुष्प्रभाव पड़े व तस्करी कर लाए हुए विदेशी ब्रांड को बढ़ावा मिले


नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात आदि राज्यों में वाणिज्यिक फसलों के लाखों किसानों और खेत श्रमिकों के हितों के लिए प्रतिनिधि गैर-लाभकारी संगठन फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया फार्मर एसोसिएशंस (एफएआईएफए) ने आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के 'वोकल फॉर लोकल' अभियान की तारीफ की और सरकार से पश्चिमी देशों के प्रभाव में तंबाकू को नियंत्रित करने वाली नीतियां बनाने की पुरानी परंपरा को खत्म करने और भारत में तंबाकू उपभोग के तरीके की वास्तविकता को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने की दिशा में आगे बढ़ने की अपील की। फेडरेशन ने सरकार से कोविड-19 महामारी के कारण वित्तीय संकट में फंसे एफसीवी तंबाकू किसानों के प्रति संवेदनशील होने और सिगरेट पर टैक्स की दरों को जीएसटी से पहले के स्तर पर लाने की भी अपील की, जिससे बाजार में तस्करी कर लाई हुई विदेशी ब्रांड की सिगरेट की हिस्सेदारी को कम किया जा सके और भारतीय उद्योग व किसान भी प्रधानमंत्री के वोकल फॉर लोकल के लक्ष्य के अनुरूप ही लाभान्वित हो सकें


भारत में तंबाकू उपभोग का पैटर्न अनूठा है। यहां तंबाकू उपभोग के मामले में सिगरेट सबसे छोटा हिस्सेदार है और इसमें कुल खपत होने वाली तंबाकू का मात्र 9 प्रतिशत प्रयोग होता है। हालांकि, इसे यहां दुनिया के सबसे सख्त नियमन का सामना करना पड़ता है। भारत में प्रति व्यक्ति सिगरेट की खपत भी मात्र 96 है, जो दुनियाभर में सबसे कम खपत में शुमार है। केवल 3 प्रतिशत वयस्क लोग ही यहां सिगरेट पीते हैं। वहीं बिना धुएं वाले तंबाकू उत्पादों और बीड़ी का प्रयोग करने वाले सिगरेट वालों की तुलना में क्रमशः 6 और 3 गुना हैं। हालांकि तंबाकू पर कर से मिलने वाले राजस्य में 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी सिगरेट की है और अन्य दोनों सेग्मेंट की इस टैक्स में हिस्सेदारी बहुत कम है। तंबाकू उद्योग का बड़ा हिस्सा (68 प्रतिशत) बिना टैक्स वाले या असंगठित क्षेत्र में आता है


कोविड-19 के कारण देश में मौजूदा कमजोर आर्थिक परिदृश्य और बढ़ती बेरोजगारी को देखते हुए सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसा कोई नीतिगत फैसला नहीं हो, जिससे कृषि उत्पादों की कीमत में अस्थिरता आए और भारतीय एफसीवी तंबाकू किसानों की आजीविका पर दुष्प्रभाव पड़े। अपने उत्पादन की मार्केटिंग में देरी के कारण भारतीय तंबाकू किसान पहले से ही बहुत नुकसान का सामना कर रहे हैं।


फिक्की कास्केड के हालिया अध्ययन के मुताबिक, सिगरेट की तस्करी के कारण अर्थव्यवस्था को कुल 16,138 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है और इस सेक्टर में करीब 3.34 लाख रोजगार के अवसर छिने हैं। तंबाकू नियंत्रण की दिशा में कार्यरत एनजीओ द्वारा प्रस्तावित किसी भी अन्य अव्यावहारिक नियमन से इस सेक्टर से जुड़े 4.5 करोड़ भारतीयों की आजीविका पर सीधा दुष्प्रभाव पड़ेगा।


आंध्र प्रदेश में लॉकडाउन और नीलामी की शुरुआत में देरी के कारण करीब 2,000 करोड़ रुपये की 13.6 करोड़ किलोग्राम अधिकृत एफसीवी तंबाकू की फसल में से केवल करीब 1.7 करोड़ किलोग्राम तंबाकू की ही बिक्री अब तक हो पाई है। इसी तरह कर्नाटक में आखिरी दौर की बोली मार्च में लगी थी। वहां लॉकडाउन के कारण नीलामी बंद है और करीब 30 लाख किलोग्राम एफसीवी तंबाकू की नीलामी होना अभी बाकी ही है। साथ ही, तंबाकू बोर्ड ने कर्नाटक में अगले सीजन के दौरान कम उत्पादन का भी एलान कर दिया है। बोर्ड ने उत्पादन को 9.9 करोड़ किलोग्राम से घटाकर 8.8 करोड़ किलोग्राम करने की बात कही है।


फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया फार्मर एसोसिएशंस (एफएआईएफए) के प्रेसिडेंट श्री जावरे गौड़ा ने कहा, "पिछले कुछ वर्षों में डब्ल्यूएचओ एफसीटीसी के प्रभाव में सरकार ने सचित्र चेतावनी का आकार बड़ा करने, सिगरेट पर दंडात्मक कराधान लागू करने जैसे कई सख्त नियमन तंबाकू पर लागू किए हैं। 2012-13 से अब तक सिगरेट पर टैक्स तीन गुने से ज्यादा हो चुका है और सरकार ने इनके निर्यात पर मिलने वाला प्रोत्साहन भी खत्म कर दिया है। ये नीतियां पिछली सरकारों द्वारा पश्चिम के अंधानुकरण की विरासत का नतीजा हैं, जहां सिगरेट में कुल उत्पादित तंबाकू के 91 प्रतिशत का प्रयोग होता है, जबकि भारत में सिगरेट में मात्र 9 प्रतिशत तंबाकू का ही इस्तेमाल होता है। इन सबके कारण करोड़ों भारतीयों की आजीविका पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, जबकि उनके पास किसी वैकल्पिक आजीविका का अवसर भी नहीं है। उन किसानों को भी कोई सहायता नहीं मिल रही है जो अपने यहां की सूखी जलवायु में और इस तरह की कोई नकदी फसल उगाने में असमर्थ हैं।"


फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया फार्मर एसोसिएशंस (एफएआईएफए) के महासचिव श्री मुरली बाबू ने कहा, "हम तंबाकू उपभोग वाले सभी उत्पादों पर एकसमान कराधान की अपील करते हैं। एक ऐसी व्यवस्था, जहां इनपुट और आउटपुट की मात्रा की तुलना की जा सके, के जरिये भारत के असंगठित एवं बिना कराधान वाले सेग्मेंट को भी कर के दायरे में लाया जा सकता है। जरूरत से ज्यादा नियमन और दंडात्मक कराधान के कारण अवैध सिगरेट कारोबार को बढ़ावा मिल रहा है, जिसने भारतीय सिगरेट बाजार के चौथाई हिस्से पर कब्जा जमा लिया है और तंबाकू पर निर्भर लाखों लोगों की आय बरबाद कर रहा है तथा राजकोष को भी बड़ा नुकसान हो रहा है। एक अत्यधिक नियमन सीधे तौर पर किसान विरोधी है और इनके पीछे कुछ लोगों के हित छिपे हुए हैं। प्रधानमंत्री के वोकल फॉर लोकल की नीति को अपनाकर और घरेलू सेक्टर के हित में कदम उठाकर देश में तस्करी के रास्ते आ रहे विदेशी ब्रांड के विस्तार को रोका जा सकता है।


उत्पादों की बिक्री कम होने के कारण भारतीय तंबाकू किसानों को पिछले 6 साल में 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। तस्करी कर लाए हुए सिगरेट में भारतीय किसानों द्वारा उत्पादित तंबाकू का प्रयोग नहीं होता है और इसके प्रभाव के कारण जिंबाब्वे और मालावी आदि जैसे देशों का लाभ होता है, जो लगातार अपने किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। भारत में तंबाकू उत्पादन कम होने से अन्य एफसीवी तंबाकू उत्पादक देशों को फायदा होता है, जिन्होंने वैश्विक उत्पादन के स्तर को बनाए रखने के लिए अपने यहां उत्पादन बढ़ा लिया है। वहीं भारत ने वैश्विक तंबाकू उत्पादन और निर्यात में अपनी बेहतर स्थिति को गंवा दिया है।


भारत दुनिया में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और एक बड़ा निर्यातक है। देश में 13 राज्यों में तंबाकू का उत्पादन होता है और इससे 4.57 करोड़ लोगों की आजीविका चल रही है, जिनमें लाखों किसान, श्रमिक, गरीब व आदिवासी लोग व उनके परिवार शामिल हैं। भारत जैसा कोई अन्य देश नहीं है, जहां इतनी बड़ी आबादी तंबाकू उत्पादों पर आश्रित है


कृषि समुदाय के रूप में हम सरकार से अपील करते हैं कि तंबाकू नीतियां व्यावहारिक एवं उचित हों, जिससे वैध घरेलू उद्योग प्रभावित नहीं हो और किसानों की आजीविका पर दुष्प्रभाव नहीं पड़े।